Saturday, July 23, 2011

+9 अगस्त,1925 को लखनउ के करीब काकोरी के पास क्रान्तिकारी कार्यक्रमों को संचालित करने तथा ब्रितानिया हुकूमत से भारत को आजाद कराने के लिए हथियारों को जुटाने तथा धन की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से क्रान्तिकारियों ने रेलगाड़ी से आ रहे सरकारी खजाने को गाड़ी रोकवा कर लूट लिया था।इस अभियान के बाद चन्द्रशेखर आजाद को छोड ़कर बाकी सभी क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल,अशफ़ाक उल्ला खाॅं,राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी,शचीन्द्र बख्शी,रोशन सिंह ,भूपेन्द्रनाथ सान्याल,शचीन्द्रनाथ सान्याल,जोगेश चन्द्र चटर्जी,मन्मथनाथ गुप्त,गोविन्द चरणकार उर्फ डी0एन0चैधरी,सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य,राजकुमार,विष्णु शरण दुबलिस,राम दुलारे आदि पकड़े गये तथा इन पर अभियोग चलाया गया।काकोरी काण्ड के अभियुक्त राजेन्द्र नाथ लाहिडी़ को 17 दिसम्बर 1927 को गोण्ड़ा जेल में,19 दिसम्बर 1927 को अशफ़ाक उल्ला खाॅं को फैजाबाद जेल में,राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में तथा रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया।इस मुकदमें के सेशन जज मि0 हेमिल्टन ने फैसला देते हुए कहा था कि-ये नौजवान देशभक्त हैं तथा इन्होने अपने लिए कुछ भी नहीं किया है।इन वीरों को फॅंासी की व अन्य को कड़े कारावास की सजा सुनाते समय जज ने कहा-आप सच्चे सेवक और त्यागी हो,लेकिन गलत रास्ते पर हो।मुकदमें में फैसले के बाद की स्थिति का वर्णन सरदार भगतसिंह ने पंजाबी में लिखे एक लेख में किया है कि-गरीब भारत में ही सच्चे देशभक्तों का यह हाल होता है।……….जिन्हें फंासी की सजा मिली,जिन्हें उम्र भर के लिए जेल में बन्द कर दिया गया,उनके दिलों का हाल हम नहीं समझ सकते।कदम-कदम पर रोने वाले हिन्दुस्तानी,यों ही थर-थर कॅंापने लग जाने वाले कायर हिन्दुस्तानी,उन्हें क्या समझ सकते हैं?छोटों ने बड़ों के पैरों पर झुुककर नमस्कार किया।उन्होंने छोटों को आर्शीवाद दिया,जोर से गले मिले और आह भरकर रह गये।जेल भेज दिये गये।जाते हुए श्री राम प्रसाद बिस्मिल ने बड़े दर्दनाक लहजे में कहा-

दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं।

खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है।

अब न अहले वलवले हैं और न अरमानें की भीड़।

एक मिट जाने की हसरत,अब दिले-बिस्मिल में है।।

मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे,

बाकी न मैं रहूॅं,न मेरी आरजू रहे।

जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,

तेरा ही ज़िक्रेयार,तेरी जुस्तजू रहे।।